Jammu Election
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दस साल से ज्यादा वक्त बीत चुका है। इस बार जब चुनाव का एलान हुआ तो लगा बहुत कुछ बदला हुआ नजर आएगा। एक नई बयार जम्मू व कश्मीर दोनों संभाग में देखने को मिलेगी। फिलहाल ऐसा कुछ नहीं दिखा। चुनाव प्रचार, मुद्दे, रणनीति, प्रत्याशी, स्टार प्रचारक यह सबकुछ पहले दिन से दो हिस्सों में बंटकर चल रहा था। जम्मू और कश्मीर।
दोनों जगह के मुद्दे अलग थे। यहां प्रचार करने का तरीका जुदा था तो नतीजे भी अलग और एकदम साफ सियासी संदेश के साथ आए। घाटी ने साफ किया वह किसी भी हाल में भाजपा के साथ या उसके साथ दिखने वाले किसी भी दल या व्यक्ति के साथ नहीं जाएगी तो जम्मू ने भाजपा की ताकत बढ़ाकर अपने इरादे साफ कर दिए। मैदान बनाम पहाड़ की लड़ाई वैसी ही रही।
जम्मू में भाजपा की पकड़ हुई मजबूत, नेकां ने छोड़ी छाप, पीडीपी का सफाया
जम्मू-कश्मीर में अब तक हुए सभी चुनावों पर गौर करें तो कश्मीर में हमेशा नेशनल कॉन्फ्रेंस, कांग्रेस और पीडीपी का वर्चस्व दिखता रहा है। वहीं, जम्मू के मैदानी इलाकों में 1987 में भगवा पार्टी का प्रभुत्व शुरू हुआ और 2014 तक आते-आते लगभग जम्मू संभाग पर छा गया।
इस बार के चुनाव में उम्मीद जताई जा रही थी कि अनुच्छेद 370 हटने के बाद जम्मू-कश्मीर की जनता एकतरफा फैसला सुनाएगी। हुआ भी कुछ ऐसा ही, जम्मू ने भी एकतरफा फैसला भाजपा के पक्ष में सुनाया और कश्मीर ने नेकां के पक्ष में।